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गर्मियों की छुट्टियाँ





गर्मियों की छुट्टी वही बिताते थे
हम भी नानी के घर जाते थे
धूम बहुत मचाते थे।।

कुछ भी नही था उस समय,
ना बिजली,ना टीवी ना रेडियो,
बस सब साथ मिल जाते थे।
धूम बहुत मचाते थे।।

भरी दोपहर में छत पे जाते थे,
चारपाइयों से घर बनाते थे।
धूम बहुत मचाते थे।।

ना पिज्जा था ना बर्गर था,
रोटी, छाछ  सब भर भर था।

शाम ढले फिर छत पे ही मजमा था,
पानि डाल के छत को ठंडताते थे।
धूम बहुत मचाते थे।।

रात को सभी घरों की साझी छत पे एक मेला सा लगता था।
सब की दिन भर की बाते और मुलाकाते थी,
फिर तारों भरे आसमान के नीचे सोना था।
कोई गद्दे नही थे बस छत पे एक बिछोना था।

*आज की छुट्टीया।*

आज भी कुछ बच्चे छुट्टीओ में नानी के जाते है।

सारा दिन कूलर और एसी में बिताते है।
मोबाइल मै गेम खेलते है और जहा से गए है वही वीडीओ कॉल लगाते है।

शायद एक दो कजन से भी मिल पाते है।
ऑन लाइन खाना मगवाते हे और अपनी जिद्दी आदतों से नाना~नानी से हाथ जुड़वाते हैं।

पता नही समय बदला है या समाज बदला है?
हम तो आज भी अपने को वही खड़ा पाते हैं।

🎼$4U
सुनील शर्मा, कोलकाता



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5 Comments

Swati chourasia

24-May-2023 09:22 AM

बहुत ही खूबसूरत रचना 👌

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Abhinav ji

24-May-2023 09:20 AM

Very nice

Reply

Alka jain

24-May-2023 07:46 AM

बहुत खूब

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